सह्याद्रि : ज़मीन पर बसा एक ख़्वाब
डॉ गुंजन कुमार झा सहयाद्रि यानी ज़मीन पर पसरा एक ख्वाब। एक ख्वाब जो अपने होने में हकीकत को यक़ीन करने लायक अफ़साना बना दे। पहाड़, पत्थर, मैदान, नदी, पेड़, सूरज, चांद, तारे …यानी कि प्रकृति की गोद में विकसित होती ज़िन्दगी। पुणे से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित सहयाद्रि […]
सांस्कृतिक परंपरा और मीडिया
डॉ गुंजन कुमार झा संस्कृति और परंपरा दोनों ही नित्य गतिमान अवधारणाएं हैं। इसलिए इनकी सम्यक परिभाषा संभव नहीं। इतना अवश्य है कि संस्कृति अपने आप में एक परंपरा है और परंपराएं संस्कृति का अंग हैं। मीडिया एक तीसरी अवधारणा है जो संप्रंषण का व्यापक जरिया है। इसमें व्यक्ति से […]
फिल्म संगीत: बदलते दौर की आहटें
डॉ गुंजन कुमार झा फिल्मों का इतिहास करीब सौ वर्ष पुराना ही है किंतु फिल्मों ने भारतीय जनमानस को इस कदर प्रभावित किया है कि वह आम जनता की धमनियों में रच बस गया है। संगीत को, संगीत के अनेक प्रकारों को लोकप्रियता के पैमाने पर अवतरित कर या […]
भारतेंदु हरिश्चंद्र और संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा साहित्य में संगीत की बात करने वाला एक छोटा सा वर्ग है. साहित्य का कथित गंभीर वर्ग उन्हें ‘सीरियसली’ नहीं लेता. उन्हें लगता है जो हमेशा तनाव की बात करे वो साहित्यकार, तनाव का शमन करने वाला काहे का साहित्यकार. नाटक में भी जो ब्रेख्त , […]
संगीत कला और वेश्याएँ
डॉ गुंजन कुमार झा ज्ञान प्राप्त करने के लिए सिद्धार्थ (बुद्ध) जब तपस्यारत थे तब वीणा के स्वरों पर उन्हें गणिकाओं का एक गीत सुनाई पड़ा जिसका सांरांश था कि ‘‘वीणा के तारों को इतना भी न खींचो- नही तो वह टूट जाएंगे और वीणा के तारों को इतना आहिस्ता […]
ध्रुवा संगीत: एक अध्ययन
ध्रुवा संगीत: एक अध्ययन नाट्यशास्त्र रंगमंच को एक अनेक कलाओं के लोकतांत्रिक संगठन के रूप में व्याख्यायित करता है। नाटक मात्र एक कला नहीं अपितु वह कई कलाओं का उत्कृष्ट संयोजन है। मनोहर काले के अनुसार नाट्यशास्त्र हमें जिस कलागत सत्य से अवगत कराना चाहता है वह है उसका […]
कुँवर नारायण : संगीत की दृष्टि से
डॉ गुंजन कुमार झा संगीत की दृष्टि से कुँवर नारायण -डॉ गुंजन कुमार झा कविता यदि भाषा में आदमी होने की तमीज है तो संगीत आदमी में इंसान होने का प्रमाण है। कुँवर नारयण इस हिसाब से प्रामाणिक इंसान कवि हैं। हिन्दी का कवि यथार्थ और विचारधारा के नाम पर […]