लकी मैडम
जेबीटी का कोर्स पूरा होते ही सरिता की नियुक्ति नगर निगम के प्राथमिक विद्यालय में हो गयी. घर ही नहीं , पूरे गाँव में ख़ुशी का माहौल था. ‘’भाई छोरी की सरकारी नौकरी लाग गी रे “ लड्डुओं के कई दौर चले. सरिता ने अपने मोर्चे की बाज़ी मार ली […]
जैनेन्द्र कुमार : जान्हवी
डॉ गुंजन कुमार झा एक लेखक : एक कहानी {संक्षिप्तिका-6} जैनेन्द्र कुमार : जान्हवी कहानीकार के रूप में जैनेन्द्र का उदय प्रेमचन्द युग में हुआ। किन्तु प्रेमचंद और जैनेन्द्र में बुनियादी अंतर स्पष्ट है। । प्रेमचन्द ने जहां अपने समग्र कथा साहित्य में व्यष्टि के स्थान पर समष्टि को महत्व […]
मिथक
डॉ गुंजन कुमार झा मिथक शब्द अंग्रेजी शब्द ‘मिथ’ का हिन्दीकरण है। ‘मिथ’ यूनानी शब्द ‘माइथोस’ से निकला है। ‘माइथोस’ का अर्थ है – अतर्क्य आख्यान । माइथोस का विलोम है- ‘लागोस’ यानी तार्किक संलाप। मिथक में तर्क की कोई गुंजाइश नहीं हाती। इसमें व्यक्त भावनाओं , विचारों और घटनाओं […]
‘अंधेर नगरी’ में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु के लिए साहित्य शगल नहीं था, आन्दोलन था। व्यापक आन्दोलन – स्वाधीनता आन्दोलन, भाषा-आंदोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन, साहित्यिक आन्दोलन, सामाजिक आन्दोलन, रंगमंच आन्दोलन। बालकुकुन्द गुप्त ने उनके लेखन को तेज, तीखा, बेधड़क लेखन कहा और रामविलास शर्मा ने उन्हें हिन्दी नवजागरण के साथ ही प्रगतिशील चेतना […]
नाट्यशास्त्र : नाट्य-विधान और संगीत-प्रयोग
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक और संगीत का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिसकी चर्चा नाट्यशास्त्र में ना की गयी हो। इसलिए नाट्यशास्त्र का संदर्भ दिए बगैर इन विषयों में कोई भी बात पूरी नहीं होती। नाटकों में गीत और संगीत की स्थिति क्या है और कैसी होनी चाहिए, […]
नाटकों में संगीत की महत्ता
डॉ गुंजन कुमार झा नाटकों के मंचन में संगीत केवल एक सहयोगी तत्त्व ही नहीं अपितु एक अनिवार्य अंग है। भरत से लेकर आज तक संगीत नाटकों को न सिर्फ लोकप्रिय बनाता रहा है अपितु उसकी गूढ व्यंजनाओं को भी सरलीकृत रूप में लोक-हृदय तक पहँचाने में अपनी सार्थक भूमिका […]
हिन्दी साहित्येतिहास के भारतेंदु युग में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा उन्नीसवीं सदी का समूचा उत्तरार्द्ध सामान्यतः हिन्दी साहित्येतिहास का भारतेन्दु युग है। भारतेन्दु युग का समय दो पत्रिकाओं के प्रकाशन वर्ष से निर्धारित किया जा सकता है। यानी ‘कविवचन सुधा’ के प्रकाशन वर्ष 1868 ई- से लेकर ‘सरस्वती’ के प्रकाशन वर्ष 1900 ई- तक। 1757 से […]
‘मीडिया’ का बदलता स्वरुप और ‘न्यू मीडिया’
डॉ गुंजन कुमार झा मनुष्य और मनुष्य के बीच संवाद और सूचना का आदान-प्रदान होता रहे, यह मानवीय सभ्यता की केन्द्रीय चिंताओं में रही है। इसलिए भाषा और संप्रेषण के माध्यमों का जन्म हुआ। तकनीक ने मनुष्य की शारीरिक उपस्थिति को अनावश्यक बना दिया। संपर्क और सूचनाओं का आदान-प्रदान अब […]
फिल्म संगीत: बदलते दौर की आहटें
डॉ गुंजन कुमार झा फिल्मों का इतिहास करीब सौ वर्ष पुराना ही है किंतु फिल्मों ने भारतीय जनमानस को इस कदर प्रभावित किया है कि वह आम जनता की धमनियों में रच बस गया है। संगीत को, संगीत के अनेक प्रकारों को लोकप्रियता के पैमाने पर अवतरित कर या […]
भारतेंदु हरिश्चंद्र और संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा साहित्य में संगीत की बात करने वाला एक छोटा सा वर्ग है. साहित्य का कथित गंभीर वर्ग उन्हें ‘सीरियसली’ नहीं लेता. उन्हें लगता है जो हमेशा तनाव की बात करे वो साहित्यकार, तनाव का शमन करने वाला काहे का साहित्यकार. नाटक में भी जो ब्रेख्त , […]