‘अंधेर नगरी’ में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु के लिए साहित्य शगल नहीं था, आन्दोलन था। व्यापक आन्दोलन – स्वाधीनता आन्दोलन, भाषा-आंदोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन, साहित्यिक आन्दोलन, सामाजिक आन्दोलन, रंगमंच आन्दोलन। बालकुकुन्द गुप्त ने उनके लेखन को तेज, तीखा, बेधड़क लेखन कहा और रामविलास शर्मा ने उन्हें हिन्दी नवजागरण के साथ ही प्रगतिशील चेतना […]
हिन्दी साहित्येतिहास के भारतेंदु युग में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा उन्नीसवीं सदी का समूचा उत्तरार्द्ध सामान्यतः हिन्दी साहित्येतिहास का भारतेन्दु युग है। भारतेन्दु युग का समय दो पत्रिकाओं के प्रकाशन वर्ष से निर्धारित किया जा सकता है। यानी ‘कविवचन सुधा’ के प्रकाशन वर्ष 1868 ई- से लेकर ‘सरस्वती’ के प्रकाशन वर्ष 1900 ई- तक। 1757 से […]
भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से डॉ गुंजन कुमार झा नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय में एक कथा उल्लेखित है। जब भरत ने ब्रह्मा के आदेश पर ‘अमृतमंथन’ एवं ‘त्रिपुरदाह’ नामक नाटकों की रचना की तो उसमें संगीत तत्व को अनुपस्थित रखा। इन नाटकों […]
भारतेंदु हरिश्चंद्र और संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा साहित्य में संगीत की बात करने वाला एक छोटा सा वर्ग है. साहित्य का कथित गंभीर वर्ग उन्हें ‘सीरियसली’ नहीं लेता. उन्हें लगता है जो हमेशा तनाव की बात करे वो साहित्यकार, तनाव का शमन करने वाला काहे का साहित्यकार. नाटक में भी जो ब्रेख्त , […]
भारतेन्दु कृत ‘भारत दुर्दशा’ का संगीत पक्ष
डॉ गुंजन कुमार झा ‘भारत दुर्दशा’ हिन्दी जाति की राष्ट्रीय चेतना का प्रारंभिक दस्तावेज है। राष्ट्रीय चेतना अनिवार्यतः राजनीतिक चेतना से अनुस्यूत है. भारत दुर्दशा को हिन्दी का पहला ‘राजनीतिक नाटक’ भी माना गया है। भारतेंदु ने भी इसे देशवत्सलता का नाटक माना है. बताने की आवश्यकता नहीं है कि […]
भारतेंदु युग में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु युग को प्रायः ‘कविवचन सुधा’ के प्रकाशन वर्ष 1868 ई- से लेकर ‘सरस्वती’ के प्रकाशन वर्ष 1900 ई- तक माना जाता है। मोटे तौर पर कहें तो उन्नीसवीं सदी का समूचा उत्तरार्द्ध काल भारतेन्दु युग है। यह युग अंग्रेजों के शुरूआती शासकीय दिनों […]