भारतेंदु हरिश्चंद्र और संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा साहित्य में संगीत की बात करने वाला एक छोटा सा वर्ग है. साहित्य का कथित गंभीर वर्ग उन्हें ‘सीरियसली’ नहीं लेता. उन्हें लगता है जो हमेशा तनाव की बात करे वो साहित्यकार, तनाव का शमन करने वाला काहे का साहित्यकार. नाटक में भी जो ब्रेख्त , […]
हिन्दी सांस्कृतिक पत्रकारिता का चरित्र
डॉ गुंजन कुमार झा एक प्रतिष्ठित हिन्दी अखबार में मैं शास्त्रीय संगीत के एक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग पढ रहा था। रिपोर्टिंग करने वाली संभ्रांत संगीत समालोचक मानी जाती हैं। उसमें लिखा था कि अमुक जगह कार्यक्रम हुआ जिसमें अमुक कलाकार ने अपनी मनभावन प्रस्तुति दी। उन्होंने अमुक राग प्रस्तुत किया। […]
संगीत कला और वेश्याएँ
डॉ गुंजन कुमार झा ज्ञान प्राप्त करने के लिए सिद्धार्थ (बुद्ध) जब तपस्यारत थे तब वीणा के स्वरों पर उन्हें गणिकाओं का एक गीत सुनाई पड़ा जिसका सांरांश था कि ‘‘वीणा के तारों को इतना भी न खींचो- नही तो वह टूट जाएंगे और वीणा के तारों को इतना आहिस्ता […]
नैतिक मूल्यों के विकास में साहित्य का योगदान
डॉ गुंजन कुमार झा मनुष्य ने जब इस पुथ्वी पर अपना जीवन शुरू किया होगा तो उसके सामने जो पहली समस्या रही होगी, वह रही होगी भूख की। भूख मिटाने के लिए उसने कंद-मूल खाए होंगे। पेड़ों पर लगे फ़लों को जतनों से तोड़ा होगा, छोटे जानवरों का शिकार किया […]
ग़ज़ल गायकी और मेंहदी हसन
डॉ गुंजन कुमार झा ग़ज़ल साहित्य की ऐसी विधा है जो संगीत के बेहद करीब मानी जाती है। इसकी छंदोबद्धता, संक्षिप्तता और चमत्कारिकता इसे गाने के सबसे माकूल विधा बनाती है। इसमें कोई संशय नहीं कि ग़ज़ल एक मजबूत साहित्यिक विधा है और करीब तीन सौ वर्षों से यह माशूका […]
रंगमंच और संगीत : इतिहास के सूत्र
डॉ गुंजन कुमार झा रंगमंच और संगीत का मूल एक है. इतिहास का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दोनों का एक दुसरे के विकास में बुनियादी योगदान है. दोनों एक दुसरे से अनुस्यूत हैं. आधुनिक रंगमंच ने कुछ समय के लिए जिस यथार्थवादी रंगमंच को उत्कृष्टता का […]