चालीस के बाद
लघु कहानी | गुंजन कुमार झा गूगल बताता है कि स्लोथ नामक जीव इस दुनियां का सबसे आलसी प्राणी है. गलत है. मैं कहता हूं मनुष्य से ज्यादा आलसी प्राणी इस दुनियां में कोई नहीं. हमारे सारे आविष्कार और सभी अनुसंधान हमारे आलस्य के प्रतिफलन ही हैं. चालीस के बाद […]
लकी मैडम
जेबीटी का कोर्स पूरा होते ही सरिता की नियुक्ति नगर निगम के प्राथमिक विद्यालय में हो गयी. घर ही नहीं , पूरे गाँव में ख़ुशी का माहौल था. ‘’भाई छोरी की सरकारी नौकरी लाग गी रे “ लड्डुओं के कई दौर चले. सरिता ने अपने मोर्चे की बाज़ी मार ली […]
शास्त्रीय संगीत का एक सामंत-साधक
डॉ गुंजन कुमार झा सामंत शब्द सुनते ही एक अवधारणा मन विकसित हो जाती है. शोषण करने वाला. किसानों का खून चूसने वाला. औरतों को ग़ुलाम बनाए रखने वाला आदि. किन्तु सामंती व्यवस्था में भी कुछ सामंत ऐसे हुए जो कलाकार का ह्रदय रखते थे. वे बेशक सामंत थे किन्तु […]
ग़ज़ल गायकी और मेंहदी हसन
डॉ गुंजन कुमार झा ग़ज़ल साहित्य की ऐसी विधा है जो संगीत के बेहद करीब मानी जाती है। इसकी छंदोबद्धता, संक्षिप्तता और चमत्कारिकता इसे गाने के सबसे माकूल विधा बनाती है। इसमें कोई संशय नहीं कि ग़ज़ल एक मजबूत साहित्यिक विधा है और करीब तीन सौ वर्षों से यह माशूका […]
रंगमंच और संगीत : इतिहास के सूत्र
डॉ गुंजन कुमार झा रंगमंच और संगीत का मूल एक है. इतिहास का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दोनों का एक दुसरे के विकास में बुनियादी योगदान है. दोनों एक दुसरे से अनुस्यूत हैं. आधुनिक रंगमंच ने कुछ समय के लिए जिस यथार्थवादी रंगमंच को उत्कृष्टता का […]
नाटक की उत्पत्ति : विभिन्न मतों का अवलोकन
डॉ गुंजन कुमार झा कला और साहित्य का अध्ययन इतिहास और विज्ञान के अध्ययन से इस मुआमले में अलग है कि यहाँ तथ्य या विधाएँ अविष्कृत नहीं होतीं विकसित होती हैं. कोई भी बात या कोई भी चीज़ यहाँ घटित होने के स्तर पर नहीं होती अपितु रचित होती है. […]
ध्रुवा संगीत: एक अध्ययन
ध्रुवा संगीत: एक अध्ययन नाट्यशास्त्र रंगमंच को एक अनेक कलाओं के लोकतांत्रिक संगठन के रूप में व्याख्यायित करता है। नाटक मात्र एक कला नहीं अपितु वह कई कलाओं का उत्कृष्ट संयोजन है। मनोहर काले के अनुसार नाट्यशास्त्र हमें जिस कलागत सत्य से अवगत कराना चाहता है वह है उसका […]