‘अंधेर नगरी’ में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु के लिए साहित्य शगल नहीं था, आन्दोलन था। व्यापक आन्दोलन – स्वाधीनता आन्दोलन, भाषा-आंदोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन, साहित्यिक आन्दोलन, सामाजिक आन्दोलन, रंगमंच आन्दोलन। बालकुकुन्द गुप्त ने उनके लेखन को तेज, तीखा, बेधड़क लेखन कहा और रामविलास शर्मा ने उन्हें हिन्दी नवजागरण के साथ ही प्रगतिशील चेतना […]
नाट्यशास्त्र : नाट्य-विधान और संगीत-प्रयोग
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक और संगीत का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिसकी चर्चा नाट्यशास्त्र में ना की गयी हो। इसलिए नाट्यशास्त्र का संदर्भ दिए बगैर इन विषयों में कोई भी बात पूरी नहीं होती। नाटकों में गीत और संगीत की स्थिति क्या है और कैसी होनी चाहिए, […]
नाटकों में संगीत की महत्ता
डॉ गुंजन कुमार झा नाटकों के मंचन में संगीत केवल एक सहयोगी तत्त्व ही नहीं अपितु एक अनिवार्य अंग है। भरत से लेकर आज तक संगीत नाटकों को न सिर्फ लोकप्रिय बनाता रहा है अपितु उसकी गूढ व्यंजनाओं को भी सरलीकृत रूप में लोक-हृदय तक पहँचाने में अपनी सार्थक भूमिका […]
भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से डॉ गुंजन कुमार झा नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय में एक कथा उल्लेखित है। जब भरत ने ब्रह्मा के आदेश पर ‘अमृतमंथन’ एवं ‘त्रिपुरदाह’ नामक नाटकों की रचना की तो उसमें संगीत तत्व को अनुपस्थित रखा। इन नाटकों […]
भारतेंदु हरिश्चंद्र और संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा साहित्य में संगीत की बात करने वाला एक छोटा सा वर्ग है. साहित्य का कथित गंभीर वर्ग उन्हें ‘सीरियसली’ नहीं लेता. उन्हें लगता है जो हमेशा तनाव की बात करे वो साहित्यकार, तनाव का शमन करने वाला काहे का साहित्यकार. नाटक में भी जो ब्रेख्त , […]
रंगमंच और संगीत : इतिहास के सूत्र
डॉ गुंजन कुमार झा रंगमंच और संगीत का मूल एक है. इतिहास का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दोनों का एक दुसरे के विकास में बुनियादी योगदान है. दोनों एक दुसरे से अनुस्यूत हैं. आधुनिक रंगमंच ने कुछ समय के लिए जिस यथार्थवादी रंगमंच को उत्कृष्टता का […]
नाटक की उत्पत्ति : विभिन्न मतों का अवलोकन
डॉ गुंजन कुमार झा कला और साहित्य का अध्ययन इतिहास और विज्ञान के अध्ययन से इस मुआमले में अलग है कि यहाँ तथ्य या विधाएँ अविष्कृत नहीं होतीं विकसित होती हैं. कोई भी बात या कोई भी चीज़ यहाँ घटित होने के स्तर पर नहीं होती अपितु रचित होती है. […]
‘भारतीय जन-नाट्य संघ’- एक आन्दोलन
डॉ गुंजन कुमार झा ‘भारतीय जन-नाट्य संघ’ डॉ गुंजन कुमार झा आधुनिक युग की मूल प्रवृत्ति विज्ञान और सभ्यता के विकास के साथ आत्मविस्तार की भी रही है. नाटक भी इससे अछूता नहीं. देश जब सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर नई करवट ले रहा था तब युग की नाट्यचेतना कुछ […]
नाटक की उत्पत्ति
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक की उत्पत्ति जिंदगी ने जब पृथ्वी पर अंगड़ाई ली होगी तो उसकी सबसे पहली लड़ाई हुई होगी भूख से। इस भूख को मिटाने के लिए किए गए संघर्ष के बाद जब मनुष्य सुस्ता कर बैठा होगा तो पहली बार उसका मन सर्जना की ओर गया […]
भारतेन्दु कृत ‘भारत दुर्दशा’ का संगीत पक्ष
डॉ गुंजन कुमार झा ‘भारत दुर्दशा’ हिन्दी जाति की राष्ट्रीय चेतना का प्रारंभिक दस्तावेज है। राष्ट्रीय चेतना अनिवार्यतः राजनीतिक चेतना से अनुस्यूत है. भारत दुर्दशा को हिन्दी का पहला ‘राजनीतिक नाटक’ भी माना गया है। भारतेंदु ने भी इसे देशवत्सलता का नाटक माना है. बताने की आवश्यकता नहीं है कि […]