प्रेमचंद : माँ
डॉ गुंजन कुमार झा एक लेखक: एक कहानी {संक्षिप्तिका-3} प्रेमचंद : माँ प्रेमचन्द हिन्दी कहानी के पुरोधा रचनाकार हैं। इनका जन्म 31 जुलाई 1880 ई- को बनारस के समीप लमही नामक गाँव में हुआ। मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव। इन्हें इनके जानने वाले नवाबराय के नाम से भी पुकारते थे। इनके […]
कृष्णा सोबती : सिक्का बदल गया
डॉ गुंजन कुमार झा एक लेखक : एक कहानी, संक्षिप्तिका-2 कृष्णा सोबती : सिक्का बदल गया आधुनिक हिन्दी कहानीकारों में नयी कहानी के महत्त्वपूर्ण कथाकारों में कृष्णा सोबती का नाम एहतराम के साथ लिया जाता है। मूलतः पंजाब की रहने वाली कृष्णा सोबती ने अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा में अनेक […]
मोहन राकेश : मलबे का मालिक {एक लेखक एक कहानी-1}
डॉ गुंजन कुमार झा मोहन राकेश नई कहानी के सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। वास्तविक नाम मदनमोहन गुगलानी । इनका जन्म सन् 1925 ई- में अमृतसर, पंजाब में हुआ। मघ्यमवर्गीय परिवार में पले-बढे मोहन राकेश ने पंजाब विश्वविद्यालय से एम-ए- तक की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक ये जालन्धर के […]
मिथक
डॉ गुंजन कुमार झा मिथक शब्द अंग्रेजी शब्द ‘मिथ’ का हिन्दीकरण है। ‘मिथ’ यूनानी शब्द ‘माइथोस’ से निकला है। ‘माइथोस’ का अर्थ है – अतर्क्य आख्यान । माइथोस का विलोम है- ‘लागोस’ यानी तार्किक संलाप। मिथक में तर्क की कोई गुंजाइश नहीं हाती। इसमें व्यक्त भावनाओं , विचारों और घटनाओं […]
‘अंधेर नगरी’ में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु के लिए साहित्य शगल नहीं था, आन्दोलन था। व्यापक आन्दोलन – स्वाधीनता आन्दोलन, भाषा-आंदोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन, साहित्यिक आन्दोलन, सामाजिक आन्दोलन, रंगमंच आन्दोलन। बालकुकुन्द गुप्त ने उनके लेखन को तेज, तीखा, बेधड़क लेखन कहा और रामविलास शर्मा ने उन्हें हिन्दी नवजागरण के साथ ही प्रगतिशील चेतना […]
नाट्यशास्त्र : नाट्य-विधान और संगीत-प्रयोग
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक और संगीत का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिसकी चर्चा नाट्यशास्त्र में ना की गयी हो। इसलिए नाट्यशास्त्र का संदर्भ दिए बगैर इन विषयों में कोई भी बात पूरी नहीं होती। नाटकों में गीत और संगीत की स्थिति क्या है और कैसी होनी चाहिए, […]
भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से डॉ गुंजन कुमार झा नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय में एक कथा उल्लेखित है। जब भरत ने ब्रह्मा के आदेश पर ‘अमृतमंथन’ एवं ‘त्रिपुरदाह’ नामक नाटकों की रचना की तो उसमें संगीत तत्व को अनुपस्थित रखा। इन नाटकों […]
हिन्दी सांस्कृतिक पत्रकारिता का चरित्र
डॉ गुंजन कुमार झा एक प्रतिष्ठित हिन्दी अखबार में मैं शास्त्रीय संगीत के एक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग पढ रहा था। रिपोर्टिंग करने वाली संभ्रांत संगीत समालोचक मानी जाती हैं। उसमें लिखा था कि अमुक जगह कार्यक्रम हुआ जिसमें अमुक कलाकार ने अपनी मनभावन प्रस्तुति दी। उन्होंने अमुक राग प्रस्तुत किया। […]
नैतिक मूल्यों के विकास में साहित्य का योगदान
डॉ गुंजन कुमार झा मनुष्य ने जब इस पुथ्वी पर अपना जीवन शुरू किया होगा तो उसके सामने जो पहली समस्या रही होगी, वह रही होगी भूख की। भूख मिटाने के लिए उसने कंद-मूल खाए होंगे। पेड़ों पर लगे फ़लों को जतनों से तोड़ा होगा, छोटे जानवरों का शिकार किया […]
रंगमंच और संगीत : इतिहास के सूत्र
डॉ गुंजन कुमार झा रंगमंच और संगीत का मूल एक है. इतिहास का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दोनों का एक दुसरे के विकास में बुनियादी योगदान है. दोनों एक दुसरे से अनुस्यूत हैं. आधुनिक रंगमंच ने कुछ समय के लिए जिस यथार्थवादी रंगमंच को उत्कृष्टता का […]