हिन्दी सांस्कृतिक पत्रकारिता का चरित्र
डॉ गुंजन कुमार झा एक प्रतिष्ठित हिन्दी अखबार में मैं शास्त्रीय संगीत के एक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग पढ रहा था। रिपोर्टिंग करने वाली संभ्रांत संगीत समालोचक मानी जाती हैं। उसमें लिखा था कि अमुक जगह कार्यक्रम हुआ जिसमें अमुक कलाकार ने अपनी मनभावन प्रस्तुति दी। उन्होंने अमुक राग प्रस्तुत किया। […]
संगीत कला और वेश्याएँ
डॉ गुंजन कुमार झा ज्ञान प्राप्त करने के लिए सिद्धार्थ (बुद्ध) जब तपस्यारत थे तब वीणा के स्वरों पर उन्हें गणिकाओं का एक गीत सुनाई पड़ा जिसका सांरांश था कि ‘‘वीणा के तारों को इतना भी न खींचो- नही तो वह टूट जाएंगे और वीणा के तारों को इतना आहिस्ता […]
नैतिक मूल्यों के विकास में साहित्य का योगदान
डॉ गुंजन कुमार झा मनुष्य ने जब इस पुथ्वी पर अपना जीवन शुरू किया होगा तो उसके सामने जो पहली समस्या रही होगी, वह रही होगी भूख की। भूख मिटाने के लिए उसने कंद-मूल खाए होंगे। पेड़ों पर लगे फ़लों को जतनों से तोड़ा होगा, छोटे जानवरों का शिकार किया […]
शास्त्रीय संगीत का एक सामंत-साधक
डॉ गुंजन कुमार झा सामंत शब्द सुनते ही एक अवधारणा मन विकसित हो जाती है. शोषण करने वाला. किसानों का खून चूसने वाला. औरतों को ग़ुलाम बनाए रखने वाला आदि. किन्तु सामंती व्यवस्था में भी कुछ सामंत ऐसे हुए जो कलाकार का ह्रदय रखते थे. वे बेशक सामंत थे किन्तु […]
ग़ज़ल गायकी और मेंहदी हसन
डॉ गुंजन कुमार झा ग़ज़ल साहित्य की ऐसी विधा है जो संगीत के बेहद करीब मानी जाती है। इसकी छंदोबद्धता, संक्षिप्तता और चमत्कारिकता इसे गाने के सबसे माकूल विधा बनाती है। इसमें कोई संशय नहीं कि ग़ज़ल एक मजबूत साहित्यिक विधा है और करीब तीन सौ वर्षों से यह माशूका […]
रंगमंच और संगीत : इतिहास के सूत्र
डॉ गुंजन कुमार झा रंगमंच और संगीत का मूल एक है. इतिहास का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दोनों का एक दुसरे के विकास में बुनियादी योगदान है. दोनों एक दुसरे से अनुस्यूत हैं. आधुनिक रंगमंच ने कुछ समय के लिए जिस यथार्थवादी रंगमंच को उत्कृष्टता का […]
स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीय संगीत की स्थिति
स्वतंत्रता के बाद में शास्त्रीय संगीत की स्थिति ग्वालियर घराना के प्रतिनिधि गायक पं लक्ष्मण कृष्णराव पंडित जी के विचार स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीय संगीत जगत में बड़े उलटफेर हुए . ग्वालियर दरबार में मेरे पिताजी सम्मानित कलाकार थे . यहाँ जो भी संगीतकार थे उन्हें किसी प्रकार की लिखा […]
नाटक की उत्पत्ति : विभिन्न मतों का अवलोकन
डॉ गुंजन कुमार झा कला और साहित्य का अध्ययन इतिहास और विज्ञान के अध्ययन से इस मुआमले में अलग है कि यहाँ तथ्य या विधाएँ अविष्कृत नहीं होतीं विकसित होती हैं. कोई भी बात या कोई भी चीज़ यहाँ घटित होने के स्तर पर नहीं होती अपितु रचित होती है. […]
‘भारतीय जन-नाट्य संघ’- एक आन्दोलन
डॉ गुंजन कुमार झा ‘भारतीय जन-नाट्य संघ’ डॉ गुंजन कुमार झा आधुनिक युग की मूल प्रवृत्ति विज्ञान और सभ्यता के विकास के साथ आत्मविस्तार की भी रही है. नाटक भी इससे अछूता नहीं. देश जब सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर नई करवट ले रहा था तब युग की नाट्यचेतना कुछ […]
नाटक की उत्पत्ति
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक की उत्पत्ति जिंदगी ने जब पृथ्वी पर अंगड़ाई ली होगी तो उसकी सबसे पहली लड़ाई हुई होगी भूख से। इस भूख को मिटाने के लिए किए गए संघर्ष के बाद जब मनुष्य सुस्ता कर बैठा होगा तो पहली बार उसका मन सर्जना की ओर गया […]