सह्याद्रि : ज़मीन पर बसा एक ख़्वाब
डॉ गुंजन कुमार झा सहयाद्रि यानी ज़मीन पर पसरा एक ख्वाब। एक ख्वाब जो अपने होने में हकीकत को यक़ीन करने लायक अफ़साना बना दे। पहाड़, पत्थर, मैदान, नदी, पेड़, सूरज, चांद, तारे …यानी कि प्रकृति की गोद में विकसित होती ज़िन्दगी। पुणे से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित सहयाद्रि […]
विश्व भाषा के रूप में हिन्दी
विश्व भर में फैले भारतीयों के आलावा नेपाल, म्यांमार, मॉरिशस, त्रिनिदाद, फिजी, गयाना, सूरीनाम, न्युज़िलेंड और संयुक्त अरब अमीरात में आदि देशों में हिन्दी भाषी लोगों की एक बड़ी संख्या मौजूद है. ‘वर्ल्ड लैंग्वेज डाटाबेस’ के 22 वें संस्करण ‘इथोनोलौज’ के अनुसार दुनियां भर में २० सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के रूप में हिन्दी तीसरे स्थान पर है. करीब 113 करोड़ के साथ अंग्रेजी पहले स्थान पर है. 111 करोड़ के साथ चीनी दुसरे स्थान पर है . इसके बाद हिन्दी का स्थान आता है.
सांस्कृतिक परंपरा और मीडिया
डॉ गुंजन कुमार झा संस्कृति और परंपरा दोनों ही नित्य गतिमान अवधारणाएं हैं। इसलिए इनकी सम्यक परिभाषा संभव नहीं। इतना अवश्य है कि संस्कृति अपने आप में एक परंपरा है और परंपराएं संस्कृति का अंग हैं। मीडिया एक तीसरी अवधारणा है जो संप्रंषण का व्यापक जरिया है। इसमें व्यक्ति से […]
‘अंधेर नगरी’ में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु के लिए साहित्य शगल नहीं था, आन्दोलन था। व्यापक आन्दोलन – स्वाधीनता आन्दोलन, भाषा-आंदोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन, साहित्यिक आन्दोलन, सामाजिक आन्दोलन, रंगमंच आन्दोलन। बालकुकुन्द गुप्त ने उनके लेखन को तेज, तीखा, बेधड़क लेखन कहा और रामविलास शर्मा ने उन्हें हिन्दी नवजागरण के साथ ही प्रगतिशील चेतना […]
नाट्यशास्त्र : नाट्य-विधान और संगीत-प्रयोग
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक और संगीत का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिसकी चर्चा नाट्यशास्त्र में ना की गयी हो। इसलिए नाट्यशास्त्र का संदर्भ दिए बगैर इन विषयों में कोई भी बात पूरी नहीं होती। नाटकों में गीत और संगीत की स्थिति क्या है और कैसी होनी चाहिए, […]
नाटकों में संगीत की महत्ता
डॉ गुंजन कुमार झा नाटकों के मंचन में संगीत केवल एक सहयोगी तत्त्व ही नहीं अपितु एक अनिवार्य अंग है। भरत से लेकर आज तक संगीत नाटकों को न सिर्फ लोकप्रिय बनाता रहा है अपितु उसकी गूढ व्यंजनाओं को भी सरलीकृत रूप में लोक-हृदय तक पहँचाने में अपनी सार्थक भूमिका […]
हिन्दी साहित्येतिहास के भारतेंदु युग में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा उन्नीसवीं सदी का समूचा उत्तरार्द्ध सामान्यतः हिन्दी साहित्येतिहास का भारतेन्दु युग है। भारतेन्दु युग का समय दो पत्रिकाओं के प्रकाशन वर्ष से निर्धारित किया जा सकता है। यानी ‘कविवचन सुधा’ के प्रकाशन वर्ष 1868 ई- से लेकर ‘सरस्वती’ के प्रकाशन वर्ष 1900 ई- तक। 1757 से […]
फिल्म संगीत: बदलते दौर की आहटें
डॉ गुंजन कुमार झा फिल्मों का इतिहास करीब सौ वर्ष पुराना ही है किंतु फिल्मों ने भारतीय जनमानस को इस कदर प्रभावित किया है कि वह आम जनता की धमनियों में रच बस गया है। संगीत को, संगीत के अनेक प्रकारों को लोकप्रियता के पैमाने पर अवतरित कर या […]
भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दुयुगीन रंगमंच : संगीत की दृष्टि से डॉ गुंजन कुमार झा नाट्यशास्त्र के चौथे अध्याय में एक कथा उल्लेखित है। जब भरत ने ब्रह्मा के आदेश पर ‘अमृतमंथन’ एवं ‘त्रिपुरदाह’ नामक नाटकों की रचना की तो उसमें संगीत तत्व को अनुपस्थित रखा। इन नाटकों […]
भारतेंदु हरिश्चंद्र और संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा साहित्य में संगीत की बात करने वाला एक छोटा सा वर्ग है. साहित्य का कथित गंभीर वर्ग उन्हें ‘सीरियसली’ नहीं लेता. उन्हें लगता है जो हमेशा तनाव की बात करे वो साहित्यकार, तनाव का शमन करने वाला काहे का साहित्यकार. नाटक में भी जो ब्रेख्त , […]