कथाकार भीष्म साहनी : एक नज़र
डॉ गुंजन कुमार झा स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी कहानी अनेक आंदालनों और वादों के बावजूद जिन्दगी की एक मुकम्मल तस्वीर प्रस्तुत करती है। यों मुकम्ल तस्वीर की जब बात होती है तब उसमें वह अधूरापन भी शामिल रहता ही है जो आधुनिक जीवन का सत्य है और जिसकी अनुगूंज हमें नई कहानी […]
रंगमंच और नाटक
रंगमंच और नाटक मनुष्य एक जीवन जीता है और मर जाता है। जीवन के इस पूरे सफर में वह नाना प्रकार के भावों और संवेदनाओं से टकराता है। खुश होता है, दुखी होता है। रूठता है, मनाया जाता है। प्रेम करता है, नफरत भी करता है। भाव और संवेदना के […]
भारतेंदु युग में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु युग को प्रायः ‘कविवचन सुधा’ के प्रकाशन वर्ष 1868 ई- से लेकर ‘सरस्वती’ के प्रकाशन वर्ष 1900 ई- तक माना जाता है। मोटे तौर पर कहें तो उन्नीसवीं सदी का समूचा उत्तरार्द्ध काल भारतेन्दु युग है। यह युग अंग्रेजों के शुरूआती शासकीय दिनों […]
राष्ट्रवाद और हिन्दी कविता
डॉ गुंजन कुमार झा वादों का विवादों से गहरा नाता रहा है। जीवन जितना संश्लिष्ट है, वाद उतना ही विशिष्ट होता है। यही अंतर्विरोध वादों को विवादों से जोड़ती है। वादों पर बात करना हमेशा ही जटिल होता है किंतु तमाम विमर्शों में अनेक विशिष्टताओं से ही संश्लिष्टता की उपज […]
भक्तिकालीन कविता और संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भक्ति काल का उद्भव भारतीय साहित्येतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना है. इसके उद्भव को लेकर तमाम तरह की विचारधाराएँ प्रचलित हैं और साहित्य का सामान्य विद्यार्थी उन विचारधाराओं से बराबर दोचार होता ही रहता है . ग्रियर्सन के लिए वह एक बाह्य प्रभाव है , रामचंद्र शुक्ल […]
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साहित्य किशोर बौद्धिकता का क्षेत्र है
साहित्य किशोर बौद्धिकता का क्षेत्र है डॉगुंजनकुमार_झा ऑनर्स की कक्षा के दौरान प्रेम और समझदारी के संदर्भ में रामेश्वर राय (Rameshwar Rai) सर का एक वाक्य ह्रदय की धमनियों में घुस जाता था – जहाँ बहुत समझदारी होगी वहाँ प्रेम नहीं होगा। प्रेम और समझदारी का यह विलोम, प्रेम-दर्शन का […]