निर्मल वर्मा : धूप का एक टुकड़ा
डॉ गुंजन कुमार झा एक लेखक : एक कहानी {संक्षिप्तिका-4} निर्मल वर्मा : धूप का एक टुकड़ा नयी कहानी के प्रणेताओं में प्रचलित परम्परा से बिल्कुल अलग कथाकार निर्मल वर्मा का जन्म 3 अप्रैल 1929 ई- को शिमला में हआ। पहाड़ी शहर की सुरम्य वादियों की छाया की पहचान निर्मल […]
प्रेमचंद : माँ
डॉ गुंजन कुमार झा एक लेखक: एक कहानी {संक्षिप्तिका-3} प्रेमचंद : माँ प्रेमचन्द हिन्दी कहानी के पुरोधा रचनाकार हैं। इनका जन्म 31 जुलाई 1880 ई- को बनारस के समीप लमही नामक गाँव में हुआ। मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव। इन्हें इनके जानने वाले नवाबराय के नाम से भी पुकारते थे। इनके […]
सांस्कृतिक परंपरा और मीडिया
डॉ गुंजन कुमार झा संस्कृति और परंपरा दोनों ही नित्य गतिमान अवधारणाएं हैं। इसलिए इनकी सम्यक परिभाषा संभव नहीं। इतना अवश्य है कि संस्कृति अपने आप में एक परंपरा है और परंपराएं संस्कृति का अंग हैं। मीडिया एक तीसरी अवधारणा है जो संप्रंषण का व्यापक जरिया है। इसमें व्यक्ति से […]
कृष्णा सोबती : सिक्का बदल गया
डॉ गुंजन कुमार झा एक लेखक : एक कहानी, संक्षिप्तिका-2 कृष्णा सोबती : सिक्का बदल गया आधुनिक हिन्दी कहानीकारों में नयी कहानी के महत्त्वपूर्ण कथाकारों में कृष्णा सोबती का नाम एहतराम के साथ लिया जाता है। मूलतः पंजाब की रहने वाली कृष्णा सोबती ने अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा में अनेक […]
मोहन राकेश : मलबे का मालिक {एक लेखक एक कहानी-1}
डॉ गुंजन कुमार झा मोहन राकेश नई कहानी के सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। वास्तविक नाम मदनमोहन गुगलानी । इनका जन्म सन् 1925 ई- में अमृतसर, पंजाब में हुआ। मघ्यमवर्गीय परिवार में पले-बढे मोहन राकेश ने पंजाब विश्वविद्यालय से एम-ए- तक की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक ये जालन्धर के […]
मिथक
डॉ गुंजन कुमार झा मिथक शब्द अंग्रेजी शब्द ‘मिथ’ का हिन्दीकरण है। ‘मिथ’ यूनानी शब्द ‘माइथोस’ से निकला है। ‘माइथोस’ का अर्थ है – अतर्क्य आख्यान । माइथोस का विलोम है- ‘लागोस’ यानी तार्किक संलाप। मिथक में तर्क की कोई गुंजाइश नहीं हाती। इसमें व्यक्त भावनाओं , विचारों और घटनाओं […]
‘अंधेर नगरी’ में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा भारतेन्दु के लिए साहित्य शगल नहीं था, आन्दोलन था। व्यापक आन्दोलन – स्वाधीनता आन्दोलन, भाषा-आंदोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन, साहित्यिक आन्दोलन, सामाजिक आन्दोलन, रंगमंच आन्दोलन। बालकुकुन्द गुप्त ने उनके लेखन को तेज, तीखा, बेधड़क लेखन कहा और रामविलास शर्मा ने उन्हें हिन्दी नवजागरण के साथ ही प्रगतिशील चेतना […]
नाट्यशास्त्र : नाट्य-विधान और संगीत-प्रयोग
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक और संगीत का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिसकी चर्चा नाट्यशास्त्र में ना की गयी हो। इसलिए नाट्यशास्त्र का संदर्भ दिए बगैर इन विषयों में कोई भी बात पूरी नहीं होती। नाटकों में गीत और संगीत की स्थिति क्या है और कैसी होनी चाहिए, […]
नाटकों में संगीत की महत्ता
डॉ गुंजन कुमार झा नाटकों के मंचन में संगीत केवल एक सहयोगी तत्त्व ही नहीं अपितु एक अनिवार्य अंग है। भरत से लेकर आज तक संगीत नाटकों को न सिर्फ लोकप्रिय बनाता रहा है अपितु उसकी गूढ व्यंजनाओं को भी सरलीकृत रूप में लोक-हृदय तक पहँचाने में अपनी सार्थक भूमिका […]
हिन्दी साहित्येतिहास के भारतेंदु युग में संगीत
डॉ गुंजन कुमार झा उन्नीसवीं सदी का समूचा उत्तरार्द्ध सामान्यतः हिन्दी साहित्येतिहास का भारतेन्दु युग है। भारतेन्दु युग का समय दो पत्रिकाओं के प्रकाशन वर्ष से निर्धारित किया जा सकता है। यानी ‘कविवचन सुधा’ के प्रकाशन वर्ष 1868 ई- से लेकर ‘सरस्वती’ के प्रकाशन वर्ष 1900 ई- तक। 1757 से […]