चालीस के बाद
लघु कहानी | गुंजन कुमार झा
गूगल बताता है कि स्लोथ नामक जीव इस दुनियां का सबसे आलसी प्राणी है. गलत है. मैं कहता हूं मनुष्य से ज्यादा आलसी प्राणी इस दुनियां में कोई नहीं. हमारे सारे आविष्कार और सभी अनुसंधान हमारे आलस्य के प्रतिफलन ही हैं. चालीस के बाद आदमी अपने इस आलस्य को अपनी व्यस्तता की खोह में सुरक्षित कर लेता है. चालीस के बाद पुरुष और स्त्री अक्सर अपने सौंदर्य के प्रतिमानों में ढील देने लग जाते हैंशरीर को लेकर इंची टेप वाली पैनी निगाहें शिथिल हो जाती हैं और रह जाता है चेहरा, नजाकत, बातें और आंखें. छत्तीस और पच्चीस के स्थान पर छतीस और छप्पन में अपनी कामुकता का मुलम्मा चढ़ा कर प्रेम और सौंदर्य के सभी प्रतिमानों को परिभाषित कर देने का सामर्थ्य केवल चालीस के लोगों के पास है.
पी एच डी थीसिस जमा करने के बाद वह लौटकर यहां कभी नहीं आई थी. आज चौदह वर्ष बाद वह यहां अपने पुराने साथी नील के साथ चाय की टपरी पर बैठी है.नील से उसका पुनर्मिलन गत वर्ष ही हुआ है. दोनों एक दूसरे के काफी करीब आ गए है. विभाग के गेट के पास यह टपरी पिछले चौदह सालो में बिल्कुल नहीं बदली. हां, चाय बनाने वाले के पास अब स्टोव की जगह गैस चूल्हा है.
नीलम शरारती आंखों से नील को देख रही है और चाय की चुस्कियों को लेते हुए आवाज़ न आए इसका भी ख्याल रख रही है. नील अनमना सा उसे देख रहा था. कुछ देर पहले उसने उसके कांधे पर हाथ रखा था और नीलम ने झटक दिया था. तब से वह सकपकाया हुआ है. उसे लगता है कि एक सहज शारीरिक अपनेपन के भाव की नीलम ने इज्जत नहीं की. वह उसके भावुक जेस्चर को गलत रूप में देख रही है. हालांकि नील को गलत सही सोचते हुए अजीब लग रहा था. गलत और सही की बात करते हुए वह अक्सर फिलोसोफिकल हो जाए करता है. उसे लगता है गलत और सही की कोई भी शाश्वत परिभाषा न है और न हो सकती है. वह इंटेलेक्चुअल हो ही रहा था कि हादसा हो गया. नीलम ने कहा – तुम एमेच्योर हो नील !
वह बोले जा रही थी “. ..साला मेरे जिंदगी में जो भी आता है वो एमेच्योर ही आता है.” नील ये सुनकर खुश था कि नीलम उसे अपनी जिंदगी में आए हुओं में शामिल कर रही है. मगर ये सुनकर मानों किसी ने उसकी पीठ में चाबुक मार दिया हो कि वह ‘एमेच्योर’ है. और ये कितने लोग आए हैं इसकी जिंदगी में ? नील के अंदर पांच हजार साल की आयु का एक शासक मर्द खड़ा होने की कोशिश कर रहा था. नील ने उकसाया – मतलब ?
नीलम बोली – “ गौरव , शादी के कुछ ही समय बाद ही बचपने पर आ गया था. … फिर आया सर्वेश. सर्वेश शुरू शुरू में तो लगता था कि कितना समझदार है. मेरी सारी स्थितियों परिस्थियों को जानता है, एक शादी शुदा स्त्री की सभी दुश्वारियों को भी जानता है मगर साला कुछ ही महीनों के बाद वो भी वैसा ही हो गया. .. टॉक्सिक होने लगा सब कुछ यू नो?. .. फिर तुम आए “
नील सांस रोक कर सुन रहा था. नीलम का चेहरा इक्कीसवीं सदी की तरह चमक रहा था. नील को लग रहा था फ्रायड को पुनः आकर अपनी भूलों को दुरुस्त करना चाहिए. कुंठा माई फूट ! वैसे वह नीलम की जिंदगी में तीसरे नंबर पर है, यह सोचकर वह फिर से खुशी के मिश्रित भाव में आ गया था. मगर इस समय उसका पूरा ध्यान अपने ऊपर दिए गए नीलम के आंकलन पर टिक गया था. “..तुम भी ऐसे ही निकले !”
नील के मुंह से निकला ‘क्या ?’ ‘ प्लीज एक्सप्लेन ‘
“ मेरा मतलब है बहुत भावुक हो यार तुम ..मत हुआ करो न !”
“कसे न होऊं , प्यार करता हूं तुमसे..” नील ने मन ही मन सोचा. बोलने को कुछ शेष न था. ! नील फ्रायड के पास जाना चाह रहा था. बहुत दिन हुए उसने कुछ पढ़ा नहीं था. आज उसने चालीस की एक स्त्री देह में उभर आए शब्दों के आगे फ्रायड को गूंगा पाया था. नहीं नहीं. ऐसा नहीं हो सकता , वह पढ़ेगा. और पढ़ेगा…..
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