साहित्य किशोर बौद्धिकता का क्षेत्र है
साहित्य किशोर बौद्धिकता का क्षेत्र है
डॉगुंजनकुमार_झा
ऑनर्स की कक्षा के दौरान प्रेम और समझदारी के संदर्भ में रामेश्वर राय (Rameshwar Rai) सर का एक वाक्य ह्रदय की धमनियों में घुस जाता था – जहाँ बहुत समझदारी होगी वहाँ प्रेम नहीं होगा। प्रेम और समझदारी का यह विलोम, प्रेम-दर्शन का एक स्थायी सिद्धांत बन गया और तमाम रोमानियतों को हमने इसी सिद्धांत के आधार पर जिया। अलग और अव्यवहारिक निर्णयों की एक पूरी श्रृंखला को आप इस अकेले सिद्धांत से जायज-नाजायज़ की हदों से बाहिर कर सकते हैं।
उक्त पंक्ति या सिद्धांत के आलोक में ज़रा इस वाक्य को समझिये – साहित्य किशोर बौद्धिकता का क्षेत्र है। किशोर बौद्धिकता क्या है? किशोर बौद्धिकता वर्ड्सवर्थ का स्पोंटेनियस ओवरफ्लो है। किशोर बौद्धिकता गुनाहों का देवता है। किशोर बौद्धिकता दरअसल उस बौद्धिकता का विलोम है जो विश्वविद्यालयों में चस्पां किये जाते हैं। मैं इसको इस रूप में समझना-समझाना चाहूंगा कि दरअसल जहाँ बहुत बौद्धिकता होगी वहाँ साहित्य नहीं होगा। बिल्कुल उसी तर्ज पर कि जहाँ बहुत समझदारी होगी वहाँ प्रेम नहीं होगा।
थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। अभी कुछ दिन पहले मैं किसी बड़े प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित वर्चुअल लाइव कार्यक्रम में किसी बड़े साहित्यकार को सुन रहा था। वह साहित्यकार जिसकी रचना पढ़कर हमने भाषा के संस्कार पाए हैं वही साहित्यकार बोलते समय लिंग और उच्चारण की भयंकर ग़लतियां कर रहा था। मतलब क्या लें? मतलब कि भाषा, भाषिक विद्वता केवल माध्यम है। साहित्य कहीं भीतर मौजूद होता या पनपता है जिसे भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। भाषिक अशुद्धता या भाषिक विज्ञता जैसी कोई एलिजिबिलिटी साहित्यकारों पर लागू नहीं होती। प्रकारांतर से साहित्यिक विज्ञता जैसी कोई अहर्ता साहित्यकारों पर लागू नहीं होती। यह अकारण तो नहीं कि सामान्यतः हिन्दी का बड़ा साहित्यकार हिन्दी विभाग से नहीं हुआ। कोई विज्ञान से रहा तो कोई इतिहास या राजनीति शास्त्र से। और तो और अंग्रेजी से हुआ। तमाम विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभाग हिन्दी के साहित्यकार नहीं पैदा कर रहे। केवल पाठक या अधिक से अधिक टिप्पणीकार पैदा कर रहे हैं। मायने क्या हैं? यही कि हिन्दी साहित्य का ज्ञान जिस तरह की बौद्धिक परिपक्वता से आपको दक्ष करता है वह आपकी भीतरी उर्वरता को या तो समाप्त कर देता है या कम से कम जूठा तो कर ही देता है। आप मौलिक देने लायक रह नहीं जाते। हाँ, यदि आपने साहित्य का अध्ययन पर्याप्त किया है तो आप तुलनात्मक आलोचना के महारथी हो सकते हैं। यह भी सम्भव है कि अपने बौद्धिक आतंक से आप साहित्यकारों की जमात के डॉन बन जाएं। विनीत हों तो भीष्म पितामह बन जाएं किन्तु आप साहित्यकार शायद ही बनें।
किशोर बौद्धिकता बुद्धि के ऐसे रचनात्मक पक्ष का प्रतिरूप है जो तत्काल , बग़ैर किसी लाग-लपेट के प्रकट होने में यकीन रखती है। वह राइट-लेफ्ट के झंझावातों से कोसों दूर है (ये काम आलोचकों का है)। वह कल्पनाशील है और एक हद तक पाठक मुखापेक्षी भी (आलोचक जिसे कभी नहीं स्वीकारते)। पुस्तकालयों में बेचने के लिए लिखे जाने वाले साहित्य और साहित्यकारों की बात फिर कभी।
Leave a Comment