स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीय संगीत की स्थिति
स्वतंत्रता के बाद में शास्त्रीय संगीत की स्थिति ग्वालियर घराना के प्रतिनिधि गायक पं लक्ष्मण कृष्णराव पंडित जी के विचार स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीय संगीत जगत में बड़े उलटफेर हुए . ग्वालियर दरबार में मेरे पिताजी सम्मानित कलाकार थे . यहाँ जो भी संगीतकार थे उन्हें किसी प्रकार की लिखा […]
नाटक की उत्पत्ति : विभिन्न मतों का अवलोकन
डॉ गुंजन कुमार झा कला और साहित्य का अध्ययन इतिहास और विज्ञान के अध्ययन से इस मुआमले में अलग है कि यहाँ तथ्य या विधाएँ अविष्कृत नहीं होतीं विकसित होती हैं. कोई भी बात या कोई भी चीज़ यहाँ घटित होने के स्तर पर नहीं होती अपितु रचित होती है. […]
‘भारतीय जन-नाट्य संघ’- एक आन्दोलन
डॉ गुंजन कुमार झा ‘भारतीय जन-नाट्य संघ’ डॉ गुंजन कुमार झा आधुनिक युग की मूल प्रवृत्ति विज्ञान और सभ्यता के विकास के साथ आत्मविस्तार की भी रही है. नाटक भी इससे अछूता नहीं. देश जब सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर नई करवट ले रहा था तब युग की नाट्यचेतना कुछ […]
नाटक की उत्पत्ति
डॉ गुंजन कुमार झा नाटक की उत्पत्ति जिंदगी ने जब पृथ्वी पर अंगड़ाई ली होगी तो उसकी सबसे पहली लड़ाई हुई होगी भूख से। इस भूख को मिटाने के लिए किए गए संघर्ष के बाद जब मनुष्य सुस्ता कर बैठा होगा तो पहली बार उसका मन सर्जना की ओर गया […]
हरिवल्लभ संगीत सम्मलेन
जालंधर से लौट कर (2016) डॉ गुंजन कुमार झा शास्त्रीय संगीत की महफ़िलों की मध्यकालीन वास्तविकताओं और किविदंतियों को वर्तमान में साकार करती चुनिन्दा महफ़िलों में से एक “हरिवल्लभ संगीत सम्मलेन” २५ दिसंबर २०१६ को जालंधर में संपन्न हुआ. तीन दिवसीय यह सम्मेलन तीन रात्रियों को अपनी सुरों कि […]
गर्विस्तान का हिन्दू
डॉ गुंजन कुमार झा दूसरी कक्षा में रहा होऊंगा. एक गोल सा सिक्का मेरे चचेरे बड़े भाई ने लाकर दिया. राम एक धनुष उठाये लड़ने को आतुर खड़े थे. तीर प्रत्यंचा पर चढाने ही वाले थे. बलिष्ठ शरीर और चेहरे पर एक गौरव का भाव. मानो आज विजय प्राप्त करके […]
भारतेन्दु कृत ‘भारत दुर्दशा’ का संगीत पक्ष
डॉ गुंजन कुमार झा ‘भारत दुर्दशा’ हिन्दी जाति की राष्ट्रीय चेतना का प्रारंभिक दस्तावेज है। राष्ट्रीय चेतना अनिवार्यतः राजनीतिक चेतना से अनुस्यूत है. भारत दुर्दशा को हिन्दी का पहला ‘राजनीतिक नाटक’ भी माना गया है। भारतेंदु ने भी इसे देशवत्सलता का नाटक माना है. बताने की आवश्यकता नहीं है कि […]
ध्रुवा संगीत: एक अध्ययन
ध्रुवा संगीत: एक अध्ययन नाट्यशास्त्र रंगमंच को एक अनेक कलाओं के लोकतांत्रिक संगठन के रूप में व्याख्यायित करता है। नाटक मात्र एक कला नहीं अपितु वह कई कलाओं का उत्कृष्ट संयोजन है। मनोहर काले के अनुसार नाट्यशास्त्र हमें जिस कलागत सत्य से अवगत कराना चाहता है वह है उसका […]
कुँवर नारायण : संगीत की दृष्टि से
डॉ गुंजन कुमार झा संगीत की दृष्टि से कुँवर नारायण -डॉ गुंजन कुमार झा कविता यदि भाषा में आदमी होने की तमीज है तो संगीत आदमी में इंसान होने का प्रमाण है। कुँवर नारयण इस हिसाब से प्रामाणिक इंसान कवि हैं। हिन्दी का कवि यथार्थ और विचारधारा के नाम पर […]
बताना भी नहीं आता छुपाना भी नहीं आता : चीन की स्थिति
डॉ गुंजन कुमार झा कल देर रात तक ग्लोबल टाइम्स पर नज़रें दौड़ाता रहा। कई रिपोर्ट्स और लेखों ने ध्यान खींचा। बड़ी स्पष्टता से समझ में आया कि कि चीन में आग भीतर तक लगी है। एक इतना मजबूत समझे जाने वाले देश की सरकारी मीडिया की सोच इतनी सतही […]