मोहन राकेश : मलबे का मालिक {एक लेखक एक कहानी-1}
डॉ गुंजन कुमार झा
मोहन राकेश नई कहानी के सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। वास्तविक नाम मदनमोहन गुगलानी । इनका जन्म सन् 1925 ई- में अमृतसर, पंजाब में हुआ। मघ्यमवर्गीय परिवार में पले-बढे मोहन राकेश ने पंजाब विश्वविद्यालय से एम-ए- तक की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक ये जालन्धर के डी-ए-वी- कॉलेज में प्राघ्यापक रहे। बाद में दिल्ली के स्नातकोत्तर सांघ्य शिक्षा संस्थान में अघ्यापन कार्य किया।
मोहन राकेश प्रयोगधर्मी रचनाकार रहे हैं। इन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक और एकांकी विधाओं में अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति की है। ‘अन्धेरे बन्द कमरे’, ‘नीली रौशनी की बांहों में’, ‘कांपता हुआ दरिया’, ‘ना आने वाला कल’ आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। ‘आपाढ का एक दिन’, ‘लहरों के राजहंस’, ‘आधे अधूरे’ तथा ‘पैर तले की जमीन’ इनके प्रमुख नाटक हैं। ‘अण्डे के छिलके’ उनका चर्चित एकांकी संग्रह है।
मोहन राकेश की कहानियों में भोगे हुए यथार्थ का सम्यक चित्रण मिलता है। देश में बँटवारे से उत्पन्न स्थितयों का खाका पाठक को द्रवीभूत करने में सक्षम है ।
‘मलबे का मालिक’ कहानी, भारत-पाक विभाजन की विभीषिका पर आधारित है जिसमें स्वार्थी तत्वों ने सम्प्रदायिकता की आड़ में भाईचारे और मानवीय संबंधों के साथ खिलवाड़ करने के साथ ही अपनत्व की भावनाओं का खून भी किया है।
लाहौर से साढे सात साल बाद गनी मियां अपने पुराने शहर अमृतसर, हॉकी खेल देखने के बहाने अपने पुराने परिवेश स्थित घर-बार देखने आते हैं। गनी मियां अपनी उन गलियों में आ जाते हैं जहाँ आज से ठीक साढे सात वर्प पूर्व उनकी एक पूरी दुनियां बसती थी। उनका बेटा चिरागदीन सपरिवार जहाँ रहता था। दंगों के समय गनी मियां ने वहां से जाते हुए चिरागदीन से कहा था कि वह उसके साथ चले किंतु चिरागदीन नए मकान केा छोड़कर जाने को राजी न हुआ। वह आश्वस्त था कि गली के सभी हिंदू भाई उसके अपने ही तो हैं। उसे अपने प्रिय मित्र रक्खा पहलवान पर पूरा भरोसा था कि उसके रहते उसका कुछ भी नुकसान नहीं हो सकता है। कहानी में यह स्पष्ट होता है कि उसी रक्खा पहलवान ने चिरागदीन के साथ विश्वासघात किया है। उसी ने चिरागदीन को नीचे बुलाकर सपरिवार उसकी हत्या कर दी है। इतना ही नहीं उसकी बहू-बेटियों की इज्जत भी लूटी है। कहानी का सबसे मार्मिक पहलू तब आता है जब इन वाकयात से अनिभिज्ञ गनी मियां रक्खा पहलवान को देखकर भावविभोर होकर कहता है कि उसके रहते चिरागदीन के साथ यह हादसा कैसे हो गया-
‘‘तू बता रक्खे, यह सब हुआ किस तरह– गनी आँसू रोकता हुआ आग्रह के साथ बोला, तुम लोग उसके पास थे, सबमें भाइ-भाई की सी मुहब्बत थी, अगर वो चाहता तो तुममें से किसी के घर में नहीं छिप सकता था– उसे इतनी भी समझ नहीं आई–’’
कहानी की पृप्ठभूमि है देश का विभाजन, विभाजन के समय मजहबी जुनून से भरे लोगों के कुकर्म-हत्या, आगजनी और दूसरे की सम्पत्ति पर अधिकार । परिणामस्वरूप मानव-मूल्यों का घ्वस्त होना। लेखक बताना चाहता है कि देश के विभाजन के समय मानव-मूल्य, आदर्श और परंपरागत गौरवशाली मान्यताएं घ्वस्त हो गयी हैं। यह स्थिति विभाजन के बाद भी कहाँ बदली है। दरअसल हमारे जीवन-मूल्य, हमारी मानवता, सहृदसयता और संवेदनाएं मलबे का ढेर बन चुकी हैं। रक्खा द्वारा चिरागदीन और उसके परिवार की नृशंस हत्या मानवता के निशेष होने की दर्दनाक कहानी है।
मलबे का ढेर वस्तुतः हमारे घ्वस्त जीवन मूल्यों की राख ही तो है । एक बात और, रक्खा द्वारा चिरागदीन की हत्या का मूल कारण केवल धार्मिक उन्माद नही है इसमें उसकी धन-लोलुपता भी शामिल है। वैभव, सम्पदा, धन-दौलत क्षण-भंगुर हैं। मलबे का ढेर इस बात का भी प्रतीक है कि सबको एक दिन मलबे का ढेर हो जाना है।
कहानी के लगभग समाप्त हो जाने के बाद, यानी कि गनी मियां के वापस चले जाने के बाद मोहन राकेश ने रक्खा पहलवान और कुत्ते के बीच जो रस्साकस्सी की सी स्थिति दिखाई है वह बहुत प्रतीकात्मक और सारगर्भित है। अंततः इस मलबे का मालिक कौन बनता है– । उसपर अंतिम आधिपत्य किसका रहता हैं। कुत्ते ने स्पर्धा भाव के कारण न तो उस कौवे को वहाँ टिकने दिया और न उस रक्खा पहलवान को। कहानी मलबे के ढेर पर ही खत्म हो जाती है। पद्मावत की पंक्ति हौले से मस्तिष्क में गूंजती है –
छार उठाइ लीन्ह एक मूठी । दीन्ह उडाइ, पिरथिमी झूठी ॥
डॉ गुंजन कुमार झा
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