बताना भी नहीं आता छुपाना भी नहीं आता : चीन की स्थिति
डॉ गुंजन कुमार झा
कल देर रात तक ग्लोबल टाइम्स पर नज़रें दौड़ाता रहा। कई रिपोर्ट्स और लेखों ने ध्यान खींचा। बड़ी स्पष्टता से समझ में आया कि कि चीन में आग भीतर तक लगी है। एक इतना मजबूत समझे जाने वाले देश की सरकारी मीडिया की सोच इतनी सतही है, यह जानकर हँसी भी आई। मेरी समझ में जो कुछ बातें आईं वे इस प्रकार हैं:-
-चीन में पर्याप्त संख्या में सैनिक हताहत हुए हैं। वो न इसे खुलकर बता सकते हैं और न इंकार कर सकते हैं। आप कहेंगे कि 50 मरे। वो कहेंगे- “ऐसा नहीं है” किन्तु यह न कहेंगे कि ‘हमारा एक भी सैनिक हताहत नहीं हुआ है।” एक फ़िल्म में वो गीत है न “बताना भी नहीं आता, छुपाना भी नहीं आता।”
- पुलवामा के समय वाशिंगटन पोस्ट के एक पत्रकार ने अपने एक लेख में भारतीय जवाबी कार्यवाही को यह कहकर अवश्यम्भावी बताया था कि भारतीय लोग अपनी सेना के प्रति ज़रूरत से ज़्यादा इमोशनल हैं और चुनी हुई लोकप्रिय सरकार उस इमोशन को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। तब यह बात समझ नहीं आई थी, अब आ गयी है।
- हमारे यहाँ चीनी सरकार पर ग़ुस्सा है, चीनी बाज़ार व उत्पाद पर ग़ुस्सा है। किंतु चीनी सैनिकों पर और चीनी जनता पर कोई अभद्र बातें कम से कम प्रतिनिधि मीडिया नहीं करता। ग्लोबल टाइम्स का संपादकीय ठीक उल्टा है। वहाँ ‘इंडियन आर्मी’ या ‘इंडियन गोवर्नमेंट’ नहीं ‘इंडियन प्यूपिल’ केंद्र में है। उसका निशाना इंडियन प्यूपिल है। ज़ाहिर है चीनी सामानों के बहिष्कार की जो एक लहर आम भारतीय मानस में घर करती जा रही है उससे चीन बचकाने तरीके से चिढ़ा हुआ है।
- चीनी मीडिया का निशाना सरकार या सेना नहीं, भारतीय आवाम है । वामपंथी बुद्धिजीवियों और उनके अनुयायियों को वह आशा भरी निगाह से देखता है। दशकों तक सत्ताधारी कांग्रेस की चाशनी में रसगुल्ले की तरह तैरता-इतराता आत्म-मुग्ध वामपंथ और कई पीढ़ियों की दिमाग़ी धमनियों में में रची-बसी यह सोच राष्ट्र के प्रति किसी भी तरह के जज़्बाती रिश्ते को नादानियत की निगाह से देखता है। इसीलिए चीन इस तबके को अपना क़रीबी समझता है। आम भारतीय जनता के बरख्श वह बार-बार अप्रत्यक्ष रूप से ‘रेशनल प्यूपिल’ व अन्य रूपों में इनकी चर्चा ज़रूर करता है।
- ग्लोबल लिखता है कि भारत की माली हालत ख़राब है । चीनी सामानों के बहिष्कार से वह और ख़राब होगी। भारत की गिरी हुई स्थिति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना संक्रमण के इतने बढ़ते मामलों के बावजूद वह लॉकडाउन जारी नहीं कर रहा। क्योंकि ऐसा करने से बड़ी संख्या में भारतीय ग़रीब भूखों मर जाएंगे।
चीनी सरकारी मीडिया को भारत की कितनी चिंता है ! वास्तव में, यह चिंता उसके भीतर के डर को ज़्यादा स्पष्ट कर रही है। समूचे चीन को लॉकडाउन करने की कूबत चीन में कितनी है , यह बात समझने योग्य है। एकमात्र शहर वुहान और उससे सटे क्षेत्रों में लॉकडाउन करने में उसकी यह दशा है। भारत ने लगभग डेढ़ महीने पूरा देश बन्द रखा। इतने बड़े देश द्वारा इतने व्यापक लॉकडाउन को कम करके नहीं आँका जा सकता। यह सफल था या असफल/ ज़रूरी था या ग़ैरज़रूरी यह अलग बात है।
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि बॉर्डर पर जारी चीन की आपत्तिजनक गतिविधियों से लोहा देश की आवाम ले रही है। चीन की घबराहट और हड़बड़ाहट आवाम की उस ताक़त से है। यह निहायत ज़रूरी है कि जनता के इस गुस्से को रचनात्मक और फलदायी बनाने में सरकार को भी अपनी भूमिका निभाए। सेना को बल और छूट के साथ विदेश-नीति में ज़रूरी संशोधन करते हुए धीरे-धीरे चीनी निवेश और आयात को सीमित कर, चीन की आर्थिक रीढ़ पर तगड़ी चोट की जा सकती है। करनी चाहिए।
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